लोकतंत्र का सिर और गमले का भार


@ डॉ. अरुण प्रताप सिंह भदौरिया

बिहार की राजनीति में यह दृश्य कोई फिल्मी पटकथा नहीं, बल्कि हकीकत है—जब राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक पौधा गमले सहित अपने वरिष्ठ अधिकारी के सिर पर रख दिया। यह घटना सिर्फ एक मज़ाकिया क्षण नहीं है, बल्कि लोकतंत्र और प्रशासन के उस गंभीर संकट की प्रतीक है, जहाँ संवेदनशीलता, मर्यादा और अनुशासन के स्थान पर अहंकार, हास्य और असंवेदनशीलता बैठती जा रही है।
सवाल यह नहीं है कि नीतीश कुमार ने यह हरकत मज़ाक में की या क्रोधवश, सवाल यह है कि क्या एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को अपने अधीनस्थ अधिकारियों के साथ ऐसा व्यवहार करना शोभा देता है? एस सिद्धार्थ कोई साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि बिहार सरकार के वरिष्ठ कैबिनेट अपर मुख्य सचिव हैं, जिनके कंधों पर राज्य प्रशासन की बड़ी जिम्मेदारियाँ हैं। उनके साथ सार्वजनिक रूप से ऐसा अपमानजनक व्यवहार लोकतंत्र की गरिमा के विरुद्ध है।
यह घटना न सिर्फ प्रशासनिक सेवा के आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचाती है, बल्कि उस राजनीतिक व्यवस्था पर भी प्रश्नचिह्न लगाती है, जिसमें सत्ता का चरित्र बेलगाम हो चला है। एक ओर हम “जनसेवक” और “लोकतंत्र के प्रहरी” जैसे शब्दों का आदर्श बुनते हैं, और दूसरी ओर उच्च पदों पर बैठे जनप्रतिनिधि खुद को राजा समझकर नौकरशाही का सार्वजनिक अपमान करने में संकोच नहीं करते।
समाज में संदेश क्या गया? यह कि नौकरशाहों को चाहे जब और जैसे अपमानित किया जा सकता है? कि सत्ता में बैठा व्यक्ति न्याय, मर्यादा और अनुशासन से ऊपर है? यह सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे शासकीय चरित्र का पतन है।
आज जब देश में नेतृत्व की गुणवत्ता, नैतिकता और शुचिता पर चर्चा की जानी चाहिए, तब ऐसे घटनाक्रम इस बहस को और भी जरूरी बना देते हैं। यह क्षण आत्ममंथन का है—नेताओं के लिए भी और समाज के लिए भी। क्या हम एक ऐसा लोकतंत्र चाहते हैं जहाँ गमले सिर पर रखे जाएं, या वह जहाँ हर व्यक्ति की गरिमा सुरक्षित हो?
नीतीश कुमार जैसे वरिष्ठ और अनुभवी नेता से अपेक्षा थी कि वे अपने वर्षों के अनुभव से प्रशासन और जनता के बीच गरिमा और संवाद की मिसाल पेश करें। लेकिन यह दृश्य इस उम्मीद पर मिट्टी डालता है—और गमले में पौधे के साथ लोकतंत्र की गरिमा को भी कुछ पल के लिए दबा देता है।