कोटद्वार के ‘सिद्धबली’ हैं महाबली ‘बजरंगबली:

#बलराम शर्मा
#हरिद्वार आकर श्रीराम भक्त सिद्धबली #हनुमान जी के दर्शन न किए.. तो बहुत कुछ अधूरा रह जाता है। हरिद्वार से कोटद्वार को रास्ता जाता है। कोटद्वार # बद्रीनाथ धाम मार्ग पर पड़ता है। #नजीबाबाद होकर इधर निकला जा सकता है। वाकई ये #सिद्धस्थल है। यहां पहुँचकर आत्मिक शांति व ऊर्जा का संचार होता है। करीब 163 सीढियां चढ़ने के बाद प्राचीर पर #बजरंगबली का मंदिर बना है। सबसे अच्छी बात है कि यहां न धक्का मुक्की। न कोई #पंडा या शॉर्टकट से दर्शन। #प्रसाद भी एक बार ही चढ़ता है। प्रसाद में #नारियल व #गुड़। नारियल व गुड़ की भेली को मंदिर से पहले ही #तोड़कर ले जाना पड़ता है। आधा प्रसाद रख लिया जाता है। बाकी वापस। यानि आप जो प्रसाद चढ़ाते हैं, वह वाकई चढ़ता है। वापस आकर नहीं #बिकता। एक लाल #चुनरी मिलती है, जो आप #मन्नत के तौर पर वहां बांध सकते हैं। परिसर में ही चालीसा व अन्य पाठ कर सकते हैं। रास्ते में ही #शिव, #भैरव विराजमान हैं। शिव पर #जलाभिषेक भी कर सकते हैं। बाद में #शनि मंदिर है। यहां #भीड़ होने के बाद भी सब कुछ व्यवस्थित है। हटो-बचो नहीं। रुकने का मन है तो पास ही #धर्मशाला है। जहां #रियायती दर पर कमरे मिल जाते हैं। पास ही #नदी बहती है, वहां का शीतल जल स्नान में आनंदित करता है। कभी-कभी नदी किनारे जंगली #हाथी व अन्य जानवर भी आ जाते हैं.. जिनसे #सतर्क रहने की जरूरत है। लेकिन हर #पहाड़ की तरह यहां भी आने वाले गंदगी बहुत फैलाते हैं। प्लास्टिक की बोतलें, रैपर व अन्य कचरा सीधे नदी की तरफ #फेंक दिया जाता है। यहां एक खास बात और है कि मंदिर परिसर में 365 दिन #भंडारे चलते हैं। आलू, पनीर, राजमा, छोले, कढ़ी, रायता, कद्दू, चावल, पूड़ी के साथ शीतल जल भूख को शांत करता है। बताया जाता है कि अगर कोई श्रद्धालु यहां भण्डारा कराना चाहे तो उसको बहुत लंबा #इंतज़ार करना होता है। कभी-कभी छह महीने से लेकर एक #साल की वेटिंग होती है। हजारों लोग यहां #भोजन करते हैं। लेकिन यहां भी लिखा होने के बाद लोग थाली में भोजन छोड़ देते हैं.. जो #फेंका जाता है। #गर्मी में वह दुर्गंध छोड़ता है। फिलहाल ये स्थान #नैसर्गिक सौंदर्य सहेजे है। कई बार आने के बाद भी #मन नहीं भरता।

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