समरसता, एकता से परिपूरित महाकुंभ का हुआ श्रीगणेश

#प्रयागराज के 45 घाटों पर दोपहर तक 60 लाख लोगों ने लगाई आस्था की डुबकियां, संगम तट पर नहाने की लगी होड़
#हर हर गंगे, महादेव के उद्घोष करते दिखे शीत में कपकपाते श्रद्धालु

#संगम तट से…
144 वर्ष के बाद वो बहुप्रतीक्षित घड़ी आ गई, जब महाकुंभ का शंखनाद हुआ। सैकड़ों एकड़ में व्यवस्थित ढंग से फैले आस्थालोक में संन्यासी से लेकर कल्पवासी, श्रद्धालु स्नानार्थियों में ग़जब की उमंग, उल्लास, उत्साह व इस पल को जीने की ललक दिख रही थी। हर कोई महाकुंभ के पहले स्नान को उसी मुहूर्त में करने को लालायित दिख रहा था..जो ब्रह्म मुहूर्त में दर्शाया गया था।

#27 सेक्टर में विभाजित कुंभनगरी में भारत भर से शंकराचार्य, पीठाधीश्वर, अघोरी, नगा साधु, किन्नर अपना ही एक मोहल्ला से बसाए हैं। जापान, अमेरिका, यूक्रेन, इंग्लैंड, श्रीलंका, भूटान, रूस आदि देशों के हजारों संत व पर्यटक भी भक्ति व आध्यात्मिक ऊर्जा के इस प्रवाह पुंज को आत्मसात करने के लिए उतावले दिखे।

#भोर में संगम तट पर नज़ारा ही अकल्पनीय था। हर कोई त्रिवेणी में ही डुबकी लगाने के लिए बस बढ़ा जा रहा था। जल, थल, नभ से निगरानी हो रही थी। ड्रोन के जरिए कन्ट्रोल रूम में बैठे सुरक्षा कर्मी हर गतिविधि पर नजर रखे थे। वीआईपी परिसरों की सुरक्षा के खास इंतजाम किए गए। घाटों पर जल पुलिस के साथ घुड़सवार लोगों भी चाक चौबंद दिखे। रविवार को पानी गिरा था। ठंड बढ़ गई थी, लेकिन आस्था के आगे शीतलहर भी उनके हौसले को डिगा नहीं पा रही थी। नहाने के बाद तर्पण, पुष्प अर्चन और त्रिपुंड लगाकर श्रद्धालुओं की टुकड़ियां जयघोष कर निकल रही थीं। स्नान के बाद किसी के चेहरे पर थकन के भाव नहीं थे। वह पहले से ज़्यादा ऊर्जित नज़र आ रहे थे।

#घाटों पर स्नान के समय नावों को बंद रखा गया था। हालांकि जल में पुष्प व दीप दान करने को मना किया जा रहा था, लेकिन लोग मान भी नहीं रहे थे। इसकी भी व्यवस्था थी। नावों पर जाल लेकर खड़े प्रहरी मुस्तेदी से उनको एकत्र कर बोरो में डाल रहे थे। सफ़ाई का पुख्ता प्रबंध था, पर कुछ लोग फिर भी नहीं मान रहे थे। कोहरा होने के कारण सूर्यदेव के दर्शन 10 बजे के करीब हुए, तब तक सारे घाट पैक हो चुके थे। शाही स्नान करने वाले घाटों पर विशेष सतर्कता बरती जा रही थी।

#वर्णित है कि कल्पवासी महाकुंभ अवधि के दौरान ब्रह्मचर्य, साधारण जीवन और नियमित प्रार्थना के सख्त व्रत का पालन करते हैं। उन्होंने न केवल अपने व्यक्तिगत आध्यात्मिक उत्थान के लिए बल्कि मानवता के कल्याण के लिए भी प्रार्थना की। इस वर्ष, महादेव की पूजा के लिए शुभ दिन सोमवार को पड़ने वाले पौष पूर्णिमा के संयोग ने इस अवसर को आध्यात्मिक रूप से और भी महत्वपूर्ण बना दिया। महाकुंभ की जीवंत ऊर्जा संगम मेला और लेटे हनुमान मंदिर के पास के बाजार क्षेत्रों तक फैल गई। पूजा सामग्री के विक्रेता और तिलक कलाकार भक्तों की बढ़ती भीड़ को संभालने में व्यस्त देखे गए। प्रसाद, चुनरी और दिया सामग्री बेचने वाले विक्रेताओं ने बताया कि इस साल तीर्थयात्रियों की आमद 2019 के कुंभ मेले से भी अधिक हो गई है। भक्त बोले, बहुत ही भव्य व्यवस्था की गई है। जैसा सोचा था उससे अधिक दिव्य। बस, ज़रूरत की चीजें कुछ महंगी हैं। सो मेला है…कमाने को सब बैठे हैं।
#बलराम शर्मा