बदायूं। शहर में सट्टा के धंधेबाजों द्वारा एक युवक की पीटकर हत्या किए जाने के बाद से पुलिस की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। सट्टेबाजों से पुलिस के संबंध कोई नए नहीं हैं। सच तो यह है कि इस धंधे की अप्रत्यक्ष रूप से कमान पुलिस के हाथ में ही रहती है।
करीब एक दशक पहले आईजी की एसओजी टीम द्वारा शहर में सटोरियों के खिलाफ की गई कार्रवाई के दौरान ये बात साबित भी हो चुकी है। तब तत्कालीन एसएसपी ने सटोरियों से संबंध रखने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई भी की थी। इनमें सबसे ज्यादा एसओजी में शामिल सिपाही थे।
वक्त गुजरने के बाद सटोरियों और पुलिस के गठजोड़ ने फिर से धंधा जमा लिया। गाहे बगाहे कभी आला अधिकारियों के आदेश पर कोई अभियान चला भी तो धंधेबाजों को उसकी पहले से सूचना मिल गई और फिर अभियान दो चार छुटभैयों के खिलाफ कार्रवाई कर बंद कर दिए गए।
हाल ही में सटोरियों द्वारा एक युवक की पीटकर हत्या कर देने के बाद से एक बार फिर पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में है। इस युवक का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने वीडियो बनाकर पुलिस से एक सट्टेबाज की शिकायत की थी। सट्टेबाज के पुलिस मित्रों ने ये बात उस तक पहुंचा दी।
इस घटना के बाद जब एसएसपी ने पुलिस और सट्टेबाजों के गठजोड़ को तोड़ने के लिए कार्रवाई शुरू की तो एसओजी में शामिल सट्टेबाजों के पैरोकार उन्हें बचाने के लिए सक्रिय हो गए हैं। धंधेबाजों को एक दो दिन भूमिगत होने के लिए कह दिया गया है। एसएसपी को दिखाने के लिए ऐसे लोगों को धरपकड़ की जा रही है, जिनका सट्टे के धंधे से कोई सरोकार ही नहीं है। ये सारा खेल एसओजी में शामिल कुछ सिपाहियों का है। लोगों का कहना है कि अगर शहर में सट्टा बंद करना है तो एसएसपी को ‘आजाद’ से शहर को आजादी दिलानी होगी।
एसएसपी साहब ! सट्टा पर अंकुश लगाना है तो बदायूं को ‘आजाद’ से आजादी दिलाइए
