#तेरा बेटा कहां पढ़ रहा है ? ये सुन बेटे की मम्मी थोड़ा अकड़कर बोलीं, , वह तो नैनीताल में है…बोर्डिंग स्कूल है.. बहुत ख़र्चा है…फ़िर उल्टा सवाल किया….तुम्हारी बिटिया ? पड़ोसन थोड़ा सकुचाते हुए… वह यहीं एक कॉन्वेंट में है… बेटे की मम्मी बोलीं, अरे….यहां कोई ढंग के स्कूल भी हैं ? नाम तो बड़े रख लिए, लेकिन वहां झोलाछाप की तरह अनट्रेंड टीचर रखे हैं… जो यहीं से पढ़कर यहीं पढ़ा रहे हैं! अरे, बच्चे को कुछ बनाना है तो बाहर किसी अच्छे स्कूल में भेजो… यह सुन पड़ोसन का मुंह उतर गया…बिटवा की बड़बोली ममा चली गईं, पर पड़ोसन को उधेड़बुन दे गईं… रात को पतिदेव आए, पहला ही सवाल दागा… हमारी बेटी बाहर नहीं पढ़ सकती ? यहां कोई स्कूल भी है ? क्या पढ़ाई होती है ? देखो उनका लड़का 95+ मार्क्स लाया था…अपनी तो 80% से ऊपर ही नहीं बढ़ी!! एक कोने में खड़ी बिटिया सुबक रही है …सोच रही है वाकई 80% कम हैं ? उसने तो अपने कॉलेज में टॉप किया है ? उस पर एक मानसिक दवाब बनने लगा, वहीं पापा भी टेंशन में …
#एक समय वो भी था, जब प्रथम श्रेणी में पास होने को बड़ा धमाका और पास होने को ही सफ़लता की कुंजी समझा जाता था। लड्डू बट जाते थे। भगवान का धन्यवाद भी दे दिया जाता है…मात्र पास हो जाने पर ही माता-पिता दोहरे हो जाते थे। अगर अव्वल आ गए तो पूरे मुहल्ले में मिठाई बांट दी जाती थी। अब ये दौर आया है कि 90+ से भी मन नहीं भर रहा। आज एक वाकया देखने को मिला…एक सज्जन आए। उनसे पड़ोसी ने पूछा क्या हुआ बिटिया के रिजल्ट का ? वह बहुत ही हल्के मन से बोले 90% आए हैं…पड़ोसी को रहा नहीं गया। बोले, तुम तो ऐसे बोल रहे हो जैसे बहुत कम हैं… वह तब भी लटका मुँह लिए खड़े रहे…अब समझिए जब इतने अंक आने के बाद भी बाप का ये हाल है..तो बच्चे पर कितना मानसिक दवाब होगा ? शायद मां-बाप समझ न पाएं, या जानबूझकर समझना भी न चाहें!!
#दरअसल, अब पढ़ाई की एक अलग ही दुनिया है। कुछ अभिभावक महंगे स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना शान समझ रहे हैं.. ताकि वह समाज में कह सकें… बाहर पढ़ रहे हैं। ये अलग बात है कि वह पढ़ाई पूरी करने के बाद पैतृक व्यवसाय या व्यापार संभालें… बच्चों से ज़्यादा अभिभावकों में प्रतिस्पर्धा हो रही है। उसका बेटा/बेटी ने इतने परसेंटेज लाए… तेरा इतना ही? वह डाक्टरी पढ़ रहा है, तू एमबीए करेगा ? अब इंजीनियरिंग में क्या है मेरा बच्चा सीए बनेगा…यानि अपने सपने बच्चे पर थोपे जा रहे हैं… चूंकि मां-बाप पढ़ा रहे हैं…हक है उनका!! बच्चे से नहीं पूछा जा रहा कि तुम क्या चाहते हो ? इन्हीं सभी कारणों से कभी- कभी बच्चे अवसादग्रस्त हो जाते हैं। गहरे डिप्रेशन में जाने के कारण अप्रिय कदम भी उठा लेते हैं। बाहर के कोचिंग सेंटर्स पर अकेले रहकर पढ़ाई करने वालों पर दवाब ज़्यादा रहता है..परसेंटेज के खेल में उनका या उनके पेरेंट्स का सपना टूटा तो वह भो टूट जाते हैं। कोई पास होता नहीं। वह जोखिम भरा कदम उठा लेते हैं। कोटा में पिछले साल के आंकड़े इसके गवाह हैं। अन्य शहरों से अप्रिय खबरें सुनाई दे जाती हैं।।
#कहना, सिर्फ़ इतना है कि बच्चों को मशीन नहीं परफेक्ट बनाइए.. वह चाहे किसी फ़ील्ड में हों। अंतराष्ट्रीय स्तर पर न जाने कितने खिलाड़ी हैं, जो ज़्यादा पढ़े लिखे नहीं। कारोबारी, उद्योगपति हैं, जो जमीं से उठकर नई ऊंचाई तक पहुँचे हैं। फेल होने वाले आईपीएस बने हैं। कम नंबर लाने वाले बड़े बड़े अधिकारी हैं। नेताओं की तो गिनती ही न करो। बच्चों को नम्बर गेम न फांसे.. बस उनके रुझान को देखकर उनको आगे बढ़ने में मदद करें… कर्म और भाग्य मिलकर नई इबारत लिखेंगे… जो परिवार के लिए हितकर होगी। जय हिंद।।
#बलराम शर्मा